अगर Reserve Bank of India (RBI) अनगिनत नोट छाप दे — फिर भी गरीबी क्यों नहीं दूर होती?

Author name

November 8, 2025

बहुत से लोगों के मन में एक सरल-साधा सवाल उठता है — अगर RBI चाहे तो ढेर सारे नोट छाप ले। तो क्यों सरकार या बैंक ऐसा करके सीधे गरीबी को मिटा नहीं देती? यह सवाल वीडियो आदि में भी अल्बत सुनने को मिलता है। पर असल में कहानी उतनी सरल नहीं है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि नोट छापना क्यों अकेले गरीबी दूर करने का समाधान नहीं बन सकता, इसके पीछे के आर्थिक नियम-कानून क्या हैं और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

नोट छापने का मतलब क्या है?

जब RBI नए नोट छापती है या करेंसी सप्लाई बढ़ाती है, तो इसका अर्थ है कि प्रवाहित होती है। लेकिन यह सिर्फ “पेपर नोट” बढ़ा देना ही नहीं है — इसके साथ जुड़े हैं बैंकिंग सिस्टम, मुद्रा आपूर्ति, सरकार के खर्च-वित्त, उत्पादन-खपत का संतुलन।

नोट छापने से गरीबी दूर नहीं होती — क्यों?

(i) महँगाई-सक्रिया (Inflation) बढ़ जाती है
अगर पर्याप्त उत्पादन नहीं हो रहा हो, लेकिन बाजार में बहुत पैसा आ जाए, तो कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं। उदाहरण के लिए काफ़ी देशों में यह हुआ है।
(ii) मुद्रा मूल्य (Currency value) कमजोर हो सकती है
अगर करेंसी बहुत छपती है, तो उसकी विश्वसनीयता गिर सकती है, विदेशी निवेश या लेन-देनों पर प्रभाव पड़ सकता है।
(iii) गरीबी सिर्फ “पैसे का अभाव” नहीं है
गरीबी के कई आयाम हैं — शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएँ, अवसरों की कमी। सिर्फ पैसा बांटने से ये सब स्वतः पूरी नहीं हो जाते।
(iv) पूर्ति (Supply) और मांग (Demand) का संतुलन बिगड़ सकता है
बाजार में उत्पाद कम हों और लोगों के पास खरीदने के लिए ज्यादा पैसा हो, तो कीमतें आसमान छू सकती हैं। इस तरह गरीबों की स्थिति और खराब हो सकती है।

भारत में विशेष अवस्था — Reserve Bank of India की भूमिका

भारत में RBI मुद्रा नीति (monetary policy) चलाती है — नोट छापने-छापने से पहले उसे कई कारकों को ध्यान में रखना होता है। जैसे- जीडीपी (GDP), उत्पादन-खपत का स्तर, मुद्रास्फीति (inflation) का वर्तमान ट्रेंड आदि।
इसके अलावा, सिर्फ नोट छापना नहीं बल्कि मुद्रा के साथ-साथ बैंकों की ऋण-क्रिया, सरकार का खर्च, कर और निवेश का ढांचा भी मायने रखता है।

उदाहरणों से सीख

कुछ लोकतंत्रों/देशों में यह हुआ है कि “बहुत नोट छापो और गरीबी मिटाओ” का विचार अपनाया गया — लेकिन परिणाम बुरा रहा। उदाहरण के लिए Venezuela और Zimbabwe — इन देशों में महँगाई बहुत तेजी से बढ़ गई थी जब मुद्रा बहुत बढ़ी थी-छापी गई थी।

अगर नोट छाप सकते हैं तो कब-कब किया जाता है?

– जब मुद्रा पुरानी हो जाती है या खिंची हुई (mutilated) हो जाती है, तो नया डिजाइन-नोट छापना पड़ता है।
– कभी-कभी आपात स्थिति में (economy में गंभीर समस्या) सरकार-RBI मिलकर कुछ उपाय करती है। लेकिन यह “अनगिनत नोट” छापने जैसा नहीं है।
– नोट छापने का निर्णय अकेले नहीं लिया जाता — आर्थिक संतुलन, विश्वव्यापी मुद्रा पर दबाव, मुद्रा के विदेशी विनिमय (foreign exchange) रिज़र्व आदि भी प्रभावित होते हैं।

तो अंततः — नोट छापना एक आसान तरीका लग सकता है “पैसे बाँट दो गरीबी मिटा दो” के लिए, लेकिन असल में बहुत अधिक पैसों का मतलब खुद-भुगतानिया (self-defeating) हो सकता है। गरीबी को खत्म करने के लिए सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि संरचनात्मक सुधार, उत्पादन-वृद्धि, अवसरों का निर्माण, शिक्षा-स्वास्थ्य-बुनियादी सेवाएँ जरूरी हैं।
भारत में RBI द्वारा “अनगिनत नोट” छापना आज के आर्थिक माहौल में व्यवहारिक व विवेचित विकल्प नहीं है।

Leave a Comment