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नया GST रेट 2025 : क्यों 1 रुपये का शैम्पू 0.87 नहीं हुआ और बड़े पैकेट में कैसे है असली बचत?

Credit: Instagram

भारत सरकार ने हाल ही में GST रेट 2025 (GST 2.0) लागू किए हैं। इन नए बदलावों के बाद कई रोजमर्रा की चीज़ें पहले से सस्ती हो गई हैं। सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना है शैम्पू सैशे, जो अब सिर्फ 1 रुपये में मिलने लगा है। लेकिन सवाल उठता है कि अगर टैक्स 18% से घटकर 5% हो गया है, तो क्या इसकी कीमत 0.87 रुपये नहीं होनी चाहिए थी? और आखिर क्यों खुले रुपये में बेचने का विकल्प लागू नहीं किया गया? आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

1 रुपये का शैम्पू और 0.87 रुपये का भ्रम

GST दरें घटने से टैक्स का बोझ कम हुआ है। पहले जहाँ शैम्पू पर 18% टैक्स लगता था, अब सिर्फ 5% लगेगा। इससे निर्माता कंपनियों की लागत घट गई। लेकिन सवाल ये है कि 0.87 रुपये का शैम्पू क्यों नहीं दिख रहा?

इसके कई कारण हैं:

राउंड ऑफ नियम: अगर कैलकुलेशन 0.87 आती है, तो इसे पूर्णांक (1 रुपये) पर राउंड कर दिया जाता है।

कंपनी का मार्जिन: कंपनियां टैक्स की पूरी छूट ग्राहक तक नहीं पहुँचातीं, कुछ हिस्सा मुनाफे में रख लेती हैं।

अन्य लागतें वही हैं: पैकेजिंग, ट्रांसपोर्ट, मार्केटिंग जैसी लागतें नहीं बदलीं।

यानी टैक्स घटने से फायदा तो हुआ, लेकिन उपभोक्ता को पूरा लाभ नहीं मिल पाया।

बड़े पैकेट लेने में ज्यादा फायदा

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर उपभोक्ता छोटे-छोटे सैशे की बजाय बड़ा पैकेट या बोतल खरीदें तो ज्यादा लाभ मिलता है।

इकाई लागत कम: बड़े पैकेट में प्रति मिलीलीटर कीमत कम पड़ती है।

टैक्स का अनुपातिक फायदा: बड़े पैकेट पर टैक्स की बचत अधिक स्पष्ट दिखती है।

कंपनी का मार्जिन कम: सैशे की तुलना में बोतल पर कम प्रोफिट रखा जाता है।

इसलिए लंबे समय में ग्राहकों के लिए बड़े पैकेट खरीदना बेहतर विकल्प है।

नया GST रेट 2025 – मुख्य बदलाव

रोज़मर्रा के सामान (साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट) अब 18% से घटकर 5% स्लैब में।

आवश्यक वस्तुएं (अनाज, किताबें) को 0% स्लैब में रखा गया।

लक्ज़री प्रोडक्ट्स (कार, तंबाकू, महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स) पर 40% तक GST लगाया गया।

सिस्टम को सरल बनाने के लिए ज्यादातर चीज़ों को सिर्फ 5% और 18% स्लैब में रखा गया है।

नया GST रेट 2025 आम जनता के लिए राहत लेकर आया है। शैम्पू सैशे का 1 रुपये में बिकना इसका प्रतीक है, लेकिन यह 0.87 रुपये क्यों नहीं हुआ, इसका कारण है राउंड ऑफ सिस्टम, अन्य लागतें और कंपनियों का मार्जिन। “खुले रुपये” की समस्या अभी भी बनी हुई है, इसलिए असली बचत सिर्फ बड़े पैकेट खरीदने में है।

सरकार का मकसद है कि रोजमर्रा की चीजें सस्ती हों और लक्ज़री पर टैक्स ज्यादा लगे। अब देखना होगा कि क्या यह सुधार महंगाई कम करने और खपत बढ़ाने में सफल होता है या नहीं।

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